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World Environment Day 2025 Battle Against Air Pollution Resolve For A Green India With Electric Vehicles – Amar Ujala Hindi News Live

विश्व पर्यावरण दिवस हमें पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपनी जिम्मेदारी याद दिलाता है। भारत में वायु प्रदूषण और धूल की समस्या दिन-ब-दिन गंभीर होती जा रही है। दिल्ली, मुंबई, और लखनऊ जैसे शहरों में हवा की गुणवत्ता इतनी खराब हो चुकी है कि साफ आसमान देखना मुश्किल हो गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लू एच ओ  )ने चेतावनी दी है कि भारत के कई शहरी क्षेत्रों में पीएम 2 -5  का स्तर 50 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक है, जबकि सुरक्षित सीमा 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है।

डब्लू एच ओ  के अनुसार, यह स्थिति जनस्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है, क्योंकि वायु प्रदूषण और धूल के कारण हर साल लाखों लोग समय से पहले मौत का शिकार हो रहे हैं। वायु प्रदूषण का एक बड़ा हिस्सा धूल है, जो कण पदार्थ (पीएम 10 और पीएम 2-5) के रूप में हवा में फैलती है। ये कण सड़कों पर उड़ने वाली मिट्टी, निर्माण कार्य, और वाहनों की आवाजाही से उत्पन्न होते हैं। इनके कारण श्वसन रोग, अस्थमा, हृदय समस्याएं, और फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ रहा है।

धूल के कारण हर साल लगभग 1.67 मिलियन मौतें

हाल ही में, 2024 में ‘द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ’ जर्नल में प्रकाशित एक शोध ने इस समस्या पर गहरी चिंता जताई है। शोध के अनुसार, भारत में वायु प्रदूषण और धूल के कारण हर साल लगभग 10.67  लाख मौतें होती हैं। पीएम 2 -5 जैसे महीन कण फेफड़ों में गहराई तक पहुंचकर सूजन और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को बढ़ाते हैं, जिससे फेफड़ों के कैंसर का खतरा 15% तक बढ़ जाता है।

धूल के कणों से आंखों में जलन, एलर्जी, और त्वचा रोगों की शिकायतें भी बढ़ी हैं। शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया कि वायु प्रदूषण और धूल को नियंत्रित करने के लिए स्वच्छ परिवहन साधनों को बढ़ावा देना और धूल प्रबंधन के लिए सख्त नीतियां लागू करना जरूरी है। डब्लू एच ओ  ने भी इस बात पर जोर दिया है कि वायु प्रदूषण को कम करने के लिए तत्काल कदम उठाना जरूरी है, अन्यथा यह वैश्विक स्वास्थ्य संकट और गहरा सकता है।

धूल वायु प्रदूषण के मुख्य स्रोत

वायु प्रदूषण का एक हिस्सा होने के बावजूद, धूल को अलग से संबोधित करना जरूरी है, क्योंकि इसके स्रोत और समाधान प्रदूषण के अन्य कारकों से अलग हैं। धूल के मुख्य स्रोतों में निर्माण कार्य, सड़कों पर मिट्टी, और भारी वाहनों की आवाजाही शामिल हैं। इस समस्या से निपटने के लिए समग्र दृष्टिकोण अपनाना होगा।

सबसे पहले, निर्माण स्थलों पर धूल को नियंत्रित करने के लिए पानी का छिड़काव और धूलरोधी स्क्रीन का उपयोग अनिवार्य करना चाहिए। दिल्ली सरकार ने 2023 में एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया था, जिसमें ड्रोन के जरिए पानी का छिड़काव किया गया। इससे धूल के स्तर में 20% की कमी देखी गई। इस तरह के प्रयासों को देशभर में लागू करने की जरूरत है।

धूल प्रदूषण नियंत्रण के उपाय 

सड़कों की नियमित सफाई भी धूल को कम करने में प्रभावी है। वैक्यूम स्वीपिंग मशीनों का उपयोग करके सड़कों से धूल हटाई जा सकती है। जर्मनी और स्वीडन जैसे देशों में इस तकनीक से पीएम -10  के स्तर में 30% तक की कमी दर्ज की गई है। भारत में भी इस तकनीक को बड़े पैमाने पर अपनाने की जरूरत है। तीसरा, हरियाली को बढ़ावा देना एक प्राकृतिक समाधान है। सड़कों के किनारे और खुले स्थानों पर पेड़-पौधे लगाने से धूल के कण हवा में फैलने से पहले अवशोषित हो सकते हैं।

एक अध्ययन के अनुसार, एक परिपक्व पेड़ प्रतिवर्ष 100 किलोग्राम धूल और प्रदूषक कणों को अवशोषित कर सकता है। इसके अलावा, ट्रैफिक प्रबंधन भी धूल को कम करने में मददगार है। भारी वाहनों को शहर के बाहर डायवर्ट करना, ट्रैफिक जाम को कम करना, और साइकिल लेन को बढ़ावा देना जैसे कदम धूल और प्रदूषण दोनों को नियंत्रित कर सकते हैं।

ई-ड्राइव पहल एक महत्वपूर्ण कदम

वायु प्रदूषण के अन्य कारकों, जैसे वाहन उत्सर्जन, को कम करने के लिए भारत सरकार की पीएम ई-ड्राइव पहल एक महत्वपूर्ण कदम है। यह योजना अप्रैल 2024 से मार्च 2026 तक चल रही है, और इसके तहत देश भर के शहरों में 14,028 इलेक्ट्रिक बसें चलाई जा रही हैं। इसके लिए 10,900 करोड़ रुपये का निवेश किया गया है। जून 2025 तक, इस योजना के तहत हजारों बसें पहले ही सड़कों पर उतारी जा चुकी हैं, और इनके सकारात्मक प्रभाव दिखने लगे हैं। ये बसें शून्य उत्सर्जन वाली हैं और डीजल बसों की तुलना में कार्बन उत्सर्जन को काफी हद तक कम करती हैं।

एक इलेक्ट्रिक बस प्रतिवर्ष लगभग 50 टन कार्बन डाइऑक्साइड  उत्सर्जन कम कर सकती है। डीजल बसों से निकलने वाला धुआं, जो धूल के कणों को हवा में और अधिक फैलाता है, इलेक्ट्रिक बसों में पूरी तरह समाप्त हो जाता है। हालांकि ये बसें धूल की समस्या का सीधा समाधान नहीं हैं, लेकिन वायु प्रदूषण को कम करके हवा की गुणवत्ता में सुधार लाती हैं, जो धूल के प्रभाव को कम करने में अप्रत्यक्ष रूप से मदद करता है।

इलेक्ट्रिक बसों के उपयोग से जनस्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। स्वच्छ हवा से श्वसन रोग, अस्थमा, और एलर्जी जैसी समस्याओं में कमी आ रही है। एक अनुमान के अनुसार, यदि भारत के सभी बड़े शहरों में इलेक्ट्रिक बसों को पूरी तरह से लागू कर दिया जाए, तो अगले एक दशक में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में 25% तक की कमी हो सकती है। इसके साथ ही, ये बसें जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करती हैं, जो भारत जैसे देश के लिए ऊर्जा सुरक्षा की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।

ई-ड्राइव पहल पर्याप्त नहीं

हालांकि, धूल और वायु प्रदूषण से निपटने के लिए केवल पीएम ई-ड्राइव पहल पर्याप्त नहीं है। सरकार, प्रशासन, और नागरिकों को मिलकर काम करना होगा। सरकार को धूल नियंत्रण के लिए सख्त नियम लागू करने होंगे, जैसे निर्माण स्थलों पर निगरानी बढ़ाना और नियमों का उल्लंघन करने वालों पर भारी जुर्माना लगाना।

प्रशासन को सड़कों की सफाई और हरियाली बढ़ाने पर ध्यान देना होगा। वहीं, नागरिकों को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। सार्वजनिक परिवहन का अधिक उपयोग करना, निजी वाहनों का कम प्रयोग करना, और अपने आसपास पेड़-पौधे लगाना जैसे छोटे-छोटे कदम बड़े बदलाव ला सकते हैं।

पर्यावरण संरक्षण हम सबका साझा दायित्व

विश्व पर्यावरण दिवस 2025 का यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि पर्यावरण संरक्षण हम सबका साझा दायित्व है। धूल और वायु प्रदूषण से मुक्त भारत का सपना तभी साकार हो सकता है, जब हम सब मिलकर इस दिशा में काम करें। पीएम ई-ड्राइव जैसी पहलें हमें सही दिशा दिखा रही हैं, लेकिन हमें धूल जैसी समस्याओं के लिए भी ठोस और तत्काल कदम उठाने होंगे।

आइए, इस पर्यावरण दिवस पर हम संकल्प लें कि हम अपने शहरों को स्वच्छ और हरा-भरा बनाएंगे। स्वच्छ हवा और स्वस्थ जीवन हमारा अधिकार है, और इसे हासिल करने के लिए हमें अभी से प्रयास शुरू कर देना चाहिए।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

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