राजस्थान हाईकोर्ट ने देश की भावी पीढ़ी के स्वास्थ्य को लेकर बड़ा सवाल उठाया है। जस्टिस अनूप ढंड की एकलपीठ ने कुपोषण की समस्या पर स्वप्रेरित प्रसंज्ञान लेते हुए सख्त टिप्पणी की कि बच्चों और महिलाओं को पोषणयुक्त भोजन नहीं मिल पाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।
राजस्थान हाईकोर्ट ने देश की भावी पीढ़ी के स्वास्थ्य को लेकर बड़ा सवाल उठाया है। जस्टिस अनूप ढंड की एकलपीठ ने कुपोषण की समस्या पर स्वप्रेरित प्रसंज्ञान लेते हुए सख्त टिप्पणी की कि बच्चों और महिलाओं को पोषणयुक्त भोजन नहीं मिल पाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। कोर्ट ने दो टूक कहा कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम और एफएसएसएआई कानून को ईमानदारी से लागू नहीं किया जा रहा, जिससे अस्वास्थ्यकर भोजन और मोटापा बढ़ रहा है। इससे बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य और शारीरिक विकास बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।
“भविष्य खतरे में, कोर्ट आंखें बंद नहीं कर सकता”
कोर्ट ने दो टूक कहा कि जब देश के बच्चों का स्वास्थ्य और भविष्य खतरे में हो, तो अदालत मूकदर्शक नहीं बन सकती। जस्टिस ढंड ने टिप्पणी करते हुए कहा कि अधिकारी अपने कर्तव्यों के निर्वहन में विफल रहे हैं। वे न तो पौष्टिक भोजन सुनिश्चित कर पा रहे हैं और न ही जंक फूड और कोल्ड ड्रिंक्स की रोकथाम के लिए कदम उठा रहे हैं।
“भूखे पेट भगवान भी याद नहीं आते”
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में महात्मा गांधी के एक प्रसिद्ध कथन का उल्लेख करते हुए कहा कि “भूखे पेट भगवान को भी याद करना कठिन है।” कोर्ट ने कहा कि भूख सिर्फ पेट नहीं जलाती, यह संस्कृति को भी नष्ट कर देती है। वैदिक ग्रंथों में भोजन को ईश्वरीय आशीर्वाद माना गया है, लेकिन आज के हालात इसे ठुकरा रहे हैं।
“जंक फूड बच्चों की ग्रोथ रोक रहा”
कोर्ट ने खासतौर से जंक फूड और कार्बोनेटेड ड्रिंक्स (कोल्ड ड्रिंक्स) पर निशाना साधा। कहा कि ये खाद्य पदार्थ बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास को बाधित कर रहे हैं। बच्चों और युवाओं को मौसमी और पारंपरिक खाद्य पदार्थों की ओर लौटाने की जरूरत है। कोर्ट ने सुझाव दिया कि दादी-नानी की रसोई और घर के बने खाने को बढ़ावा दिया जाए, जिससे बेहतर स्वास्थ्य सुनिश्चित हो सके।
“सरकारें सोई हुई हैं, अधिकारियों ने आंखें मूंद ली हैं”
हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को भी कठघरे में खड़ा किया। कहा कि जिनके कंधों पर बच्चों के भविष्य की जिम्मेदारी है, वही आंख मूंदे बैठे हैं। एफएसएसएआई और शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी है कि स्कूलों व शिक्षण संस्थानों में जंक फूड की बिक्री पर रोक लगाएं।
“30 जुलाई तक दें जवाब”
कोर्ट ने इस मामले में केंद्र और राज्य सरकारों के कई विभागों को नोटिस जारी किया है। गृह मंत्रालय, खाद्य मंत्रालय, महिला और बाल विकास मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय, एफएसएसएआई के साथ-साथ राजस्थान सरकार के मुख्य सचिव, एसीएस बाल विकास, एसीएस खाद्य, और एसीएस शिक्षा को 30 जुलाई तक रिपोर्ट सौंपने के निर्देश दिए गए हैं।
अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या यह न्यायिक हस्तक्षेप सरकारी व्यवस्था को जगा पाएगा या फिर कुपोषण की यह लड़ाई भी फाइलों में ही दम तोड़ देगी। अदालत के इस कदम ने निश्चित तौर पर देशभर में बच्चों के पोषण और स्वास्थ्य पर एक नई बहस छेड़ दी है।