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ईरान की संसद ने संयुक्त राष्ट्र की परमाणु निगरानी एजेंसी आईएईए के साथ सहयोग निलंबित करने वाला बिल पारित किया है.
यह फ़ैसला इसराइल और अमेरिका की ओर से उसके परमाणु संयंत्रों पर हुए हमलों के जवाब में लिया गया है.
ईरान के इस कदम से आईएईए के साथ उसका तनाव और बढ़ गया है.
इससे ईरान के परमाणु कार्यक्रम की अंतरराष्ट्रीय निगरानी में दिक्कत बढ़ सकती है.
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बुधवार को पास हुए इस बिल के चलते आईएईए की ओर से ईरान के परमाणु कार्यक्रम की जांच, निगरानी गतिविधियां और रिपोर्टिंग रुक जाएगी.
हालांकि इस बिल को अभी ईरान की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की अंतिम मंजूरी नहीं मिली है, लेकिन यह ईरान के परमाणु कार्यक्रम में अहम बदलाव का संकेत देता है.
ईरानी संसद के सदस्य और राष्ट्रीय सुरक्षा समिति के प्रवक्ता इब्राहिम रेज़ाई के मुताबिक, यह कदम ईरान की संप्रभुता पर ज़ोर देने और उस एजेंसी के विरोध में खड़े होने के लिए है जिसे उनके अनुसार अब ‘राजनीतिक एजेंसी’ माना जा रहा है.
पश्चिमी देशों से नए सिरे से राजनयिक संबंध स्थापित करने की उसकी कोशिशों के संदर्भ में यह बिल ईरान के लिए सौदेबाजी का एक अहम दांव हो सकता है.
ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेज़ेश्कियान ने यह संकेत भी दिया है कि उनका देश अमेरिका से परमाणु समझौते पर बातचीत जारी रख सकता है.
ईरान के फ़ैसले की वजह
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ईरान का यह फ़ैसला इसराइल के साथ 12 दिनों तक चले हवाई संघर्ष के बाद आया है.
इस दौरान अमेरिका ने भी ईरान के परमाणु संयंत्रों पर हवाई हमले किए.
अमेरिका ने फ़ोर्दो, नतांज़ और इस्फ़हान में स्थित ईरान के परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया था.
ईरान ने इसके जवाब में इसराइल और क़तर में स्थित अमेरिकी सैन्य अड्डे पर मिसाइल हमले किए.
ईरानी संसद के इस कदम को इन हमलों और आईएईए के हालिया प्रस्ताव की प्रतिक्रिया के तौर पर देखा जा रहा है.
इस प्रस्ताव में ईरान पर आरोप लगाया गया था कि वह अपनी परमाणु अप्रसार प्रतिबद्धताओं का उल्लंघन कर रहा है.
यह प्रस्ताव इसराइली हवाई हमलों से ठीक एक दिन पहले पारित किया गया था.
शीर्ष ईरानी अधिकारियों का मानना है कि इसी प्रस्ताव ने इसराइली हमलों का आधार तैयार किया.
ईरान में क्या है आईएईए की भूमिका
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आईएईए ने दो दशकों से अधिक समय से ईरान के परमाणु कार्यक्रम की निगरानी में अहम भूमिका निभाई है.
2015 में ईरान ने अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस, चीन, रूस और जर्मनी जैसे छह ताक़तवर देशों के साथ एक परमाणु समझौता किया था.
इस समझौते के तहत ईरान ने परमाणु संवर्द्धन का स्तर सीमित रखने और प्रतिबंधों में राहत के बदले अंतरराष्ट्रीय निरीक्षण का दायरा बढ़ाने पर सहमति दी थी.
लेकिन 2018 में डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका को इस समझौते से अलग कर लिया और ईरान पर फिर से प्रतिबंध लगा दिए. इसके बाद ईरान ने समझौते के कुछ प्रावधानों की अनदेखी शुरू कर दी.
उसने उच्च स्तर पर यूरेनियम संवर्द्धन शुरू कर दिया, अंतरराष्ट्रीय निरीक्षकों की पहुंच सीमित कर दी, और कुछ परमाणु स्थलों पर संयुक्त राष्ट्र के निगरानी कैमरे तक बंद कर दिए.
हालांकि आईएईए ने बुनियादी निरीक्षण जारी रखा, लेकिन पहले की तुलना में कम उपकरणों और सीमित जानकारी के साथ, क्योंकि ईरान अब भी अप्रसार संधि का हिस्सा बना हुआ है.
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जून 2025 के संघर्ष से पहले आईएईए के निरीक्षक ईरान में मौजूद थे और उन्होंने 60 फ़ीसदी शुद्धता वाले 400 किलोग्राम से अधिक संवर्द्धित यूरेनियम के भंडार की पुष्टि की थी.
60 फ़ीसदी शुद्धता का स्तर ‘हथियार-ग्रेड यूरेनियम’ से एक स्तर नीचे होता है, लेकिन इससे बहुत कम समय में परमाणु हथियार बनाए जा सकते हैं.
यह स्तर नागरिक परमाणु कार्यक्रम के लिए आवश्यक संवर्द्धन से काफ़ी अधिक है.
12 जून को आईएईए के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स ने एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें आरोप लगाया गया कि ईरान ने अपने प्रमुख परमाणु संयंत्रों तक पहुंच की अनुमति न देकर परमाणु अप्रसार संधि का उल्लंघन किया है.
साथ ही, यह भी आरोप लगाया गया कि ईरान ने अघोषित परमाणु साइटों पर यूरेनियम के अंश मिलने के मामलों में संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं दिया है, और वह आईएईए की निगरानी सीमित करने की दिशा में बढ़ रहा है.
आईएईए बोर्ड में शामिल 35 देशों में से 19 ने इस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जिनमें अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस और जर्मनी शामिल थे. जबकि रूस, चीन और बुर्किना फ़ासो समेत तीन देशों ने इसका विरोध किया.
ईरान ने इस प्रस्ताव को ‘राजनीति से प्रेरित’ बताया था. इसके ठीक एक दिन बाद इसराइल ने ईरान की कई परमाणु साइटों को निशाना बनाकर हमले शुरू कर दिए.
दोहरे मानदंड?
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ईरान का मानना है कि आईएईए का रवैया दोहरा रहा है.
जब 2022 में रूसी सेना ने यूक्रेन के ज़ापोरिज़िया परमाणु संयंत्र पर कब्जा कर लिया था, तब आईएईए के महानिदेशक रफ़ाएल ग्रोसी ने तुरंत चेतावनी जारी की थी और रूस पर “आग से खेलने” का आरोप लगाया था.
इसके विपरीत, ईरान के परमाणु संयंत्रों पर हालिया हमलों के दौरान ग्रोसी ने इसराइल या अमेरिका का नाम लेने से परहेज किया.
इसके बजाय उन्होंने परमाणु साइटों के पास किसी भी हमले के ख़िलाफ़ केवल एक सामान्य चेतावनी जारी की.
ग्रोसी ने इस सप्ताह की शुरुआत में सीएनएन को दिए इंटरव्यू में अपने रुख का बचाव करते हुए कहा, “मेरा काम किसी को कसूरवार ठहराना नहीं, बल्कि सुरक्षा उपायों को बनाए रखना और दुर्घटनाओं को रोकना है. मैंने लगातार चेतावनी दी है कि कोई भी पक्ष परमाणु साइटों को निशाना न बनाए.”
ईरान और इसराइल के बीच संघर्ष विराम के बाद ग्रोसी ने बातचीत का प्रस्ताव रखा है.
उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “आईएईए के साथ सहयोग को फिर से शुरू करना एक सफल राजनयिक समझौते की कुंजी है. मैंने ईरान के विदेश मंत्री अराग़ची से जल्द से जल्द मुलाक़ात की पेशकश की है.”
आईएईए ने कहा कि संघर्ष के दौरान उसके निरीक्षक ईरान में मौजूद रहे, लेकिन सुरक्षा कारणों से सत्यापन का काम अस्थायी रूप से रोक दिया गया था. अब वे परमाणु साइटों पर लौटने के लिए तैयार हैं.
ईरान की परमाणु साइटों पर वापसी को तैयार आईएईए
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ग्रोसी ने बुधवार को ऑस्ट्रिया में कहा कि आईएईए निरीक्षकों की ईरान के परमाणु संयंत्रों में वापसी उनकी सबसे बड़ी प्राथमिकता है.
उन्होंने कहा कि इससे यह पता चल सकेगा कि परमाणु साइटों को कितना नुक़सान पहुंचा है, साथ ही संवर्द्धित यूरेनियम भंडार की स्थिति की भी पुष्टि हो सकेगी.
जब उनसे विशेष रूप से 60 फ़ीसदी शुद्धता वाले यूरेनियम के बारे में पूछा गया, तो ग्रोसी ने बताया कि 13 जून को ईरान ने उन्हें एक पत्र भेजा था, जिसमें लिखा था कि वह परमाणु सामग्री और उपकरणों की सुरक्षा के लिए विशेष उपाय करेगा. हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि पत्र में किसी तरह का ब्योरा नहीं दिया गया था.
ग्रोसी ने कहा, “उन्होंने यह नहीं बताया कि इसका क्या मतलब था, लेकिन स्पष्ट संकेत यही था. हम यह मान सकते हैं कि यह सामग्री अब भी वहीं मौजूद है.”
उनके इस बयान से संकेत मिलता है कि ईरान का संवर्द्धित यूरेनियम भंडार शायद हमलों से सुरक्षित बचा रहा है.
आईएईए बोर्ड ऑफ गवर्नर्स को अलग से दी गई ब्रीफिंग में ग्रोसी ने फ़ोर्दो और नतांज़ साइटों पर स्थानीय स्तर पर रेडियोधर्मी और रासायनिक रिसाव की पुष्टि की, लेकिन यह भी कहा कि विकिरण साइट की सीमाओं से बाहर नहीं फैला.
उन्होंने चेतावनी दी, “विकिरण के गंभीर परिणामों को देखते हुए परमाणु संयंत्रों पर कभी हमला नहीं किया जाना चाहिए.”
अगर ईरान फिलहाल आईएईए के साथ सहयोग रोक देता है, तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय दुनिया के सबसे संवेदनशील परमाणु कार्यक्रमों पर रियल टाइम निगरानी नहीं रख पाएगा.
पश्चिमी देशों के राजनयिकों ने चेतावनी दी है कि यदि ऐसा होता है, तो यह 2003 में उत्तर कोरिया के आईएईए से हटने के बाद संयुक्त राष्ट्र की परमाणु निगरानी में सबसे गंभीर गिरावट मानी जाएगी.
भविष्य अब दो अहम निर्णयों पर निर्भर करेगा— क्या ईरानी अधिकारी संसद में पारित बिल को कानून बनाकर लागू करेंगे, या फिर क्या ग्रोसी की पहल समय रहते राजनयिक विश्वास बहाल कर निगरानी तंत्र को टूटने से बचा पाएगी.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित